गृह मंत्रालय के अधिकारी राम मंदिर निर्माण और संचालन के लिए बनने वाले ट्रस्ट का ड्राफ्ट तैयार कर रहे हैं
अदालत ने केंद्र से अयोध्या एक्ट 1993 के सेक्शन 6 और 7 के तहत 3 महीने में योजना बनाने को कहा
नई दिल्ली. अयोध्या विवाद में शनिवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक, केंद्र सरकार ट्रस्ट बनाने की प्रक्रिया जल्द शुरू करेगी। यही ट्रस्ट राम मंदिर का निर्माण और संचालन करेगा। सूत्रों के मुताबिक, गृह मंत्रालय सहित दूसरे विभागों के अधिकारी इसके लिए शुरुआती तकनीकी बिंदु तैयार करने में जुटे हैं। यह काम तेजी से किया जा रहा है, ताकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अमल किया जा सके।
अदालत ने 9 नवंबर को अपने फैसले में विवादित जमीन हिंदू पक्ष को सौंपने का आदेश दिया था। चीफ जस्टिस गोगोई, जस्टिस एसए बोबोडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एस अब्दुल नजीर की पीठ ने स्पष्ट किया कि विवादित स्थान पर मंदिर ही बनाया जाए। अदालत ने केंद्र सरकार को मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाने के निर्देश दिए थे, वहीं मुस्लिम पक्ष को भी मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ जमीन देने के निर्देश दिए थे।
जन्मभूमि का भीतरी और बाहरी आंगन ट्रस्ट को सौंपा जाएगा
ट्रस्ट के गठन का ड्राफ्ट तैयार होने के बाद, इस मामले पर संबंधित पक्षों की बैठक भी बुलाई जाएगी। पूरी प्रक्रिया में गृह मंत्रालय की अहम भूमिका होगी। ट्रस्ट बनाने और उसके सदस्य तय किए जाने के बाद, राम जन्मभूमि का भीतरी और बाहरी आंगन उसे सौंप दिया जाएगा।
कानून के जानकारों से भी सलाह लेगी केंद्र सरकार
पूरी प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से निर्धारित समय सीमा में पूरा किया जाना है। केंद्र सरकार ट्रस्ट के प्रारूप को अंतिम रूप देने से पहले कानून के जानकारों से भी सलाह लेगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि केंद्र सरकार निश्चित क्षेत्र का अधिग्रहण करने के लिए, अयोध्या एक्ट 1993 के तहत सेक्शन 6 और 7 में मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए, 3 महीने में योजना बनाए।
सुप्रीम कोर्ट ने 134 साल पुराने विवाद का अंत किया
134 साल पुराने अयोध्या मंदिर-मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर को फैसला सुनाया था। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुआई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया। इसके तहत अयोध्या की 2.77 एकड़ की पूरी विवादित जमीन राम मंदिर निर्माण के लिए दे दी। 6 अगस्त से 16 अक्टूबर तक इस मामले पर 40 दिन सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। संविधान पीठ द्वारा शनिवार को 45 मिनट तक पढ़े गए 1045 पन्नों के फैसले ने देश के इतिहास के सबसे अहम और एक सदी से ज्यादा पुराने विवाद का अंत कर दिया। अदालत ने कहा था कि रामलला विराजमान को दी गई विवादित जमीन का स्वामित्व केंद्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगा।